Sunday, February 22, 2009

कविराजा

અર્થહિન-વેવલું-non realistic લખનાર "કવિરાજાઓ" ને નવરંગ ( ૧૯૫૯ )નું ભરત વ્યાસનું આ ગીત સમર્પિત છે. 

अरे कविराजा कविताके मत अब कान मरोडो
धंधे की कुछ बात करो कुछ पैसे जोडो

शेर-शायरी कविराजा ना काम आएगी
कविताकी पोथी को दिमग खा जाएगी
भाव चढ रहे नाज हो रहा महंगा दिन-दिन
भूख मरोगे रात कटेगी तारे गीन-गीन
ईसीलिए केहता हुं भैया ये सब छोडो
धंधे की कुछ बात करो कुछ पैसे जोडो

अरे छोडो कलम चलाओ मत कविताकी चाकी
धर की रोकड देखो कीतने पैसे बाकी
अरे कीतना धरमें धी है कीतना गरम-मसाला 
कीतने पापड बडी मलौडी मिर्च-मसाला
कीतना तेल-नौन-मिर्ची-हल्दी और धनिया
कविराजा चुपके से तुम बन जाओ बनिया

अरे पैसे पर रच काव्य भुख पर गीत बनाओ
गेहुं पर हो गझल धान के शेर सुनाओ
नोन-मिर्च पर चौपाई चावल पर दोहे 
सुकवि कोयले पर कविता लिखो तो सोहे
अरे कम भाडे की खोली पर लिखो कव्वाली
जन-जन करती कहो रूबाई पैसे वाली
शब्दो का जंझाल बडा लफडा होता है
कवि संमेलन दोस्त बडा झगडा होता है
मुशायरो के शेरो पर रगडा होता है
पैसेवाला शेर बडा तगडा होता है

ईसीलिए केहता हुं मत ईस से सर फोडो
धंधे की कुछ बात करो कुछ पैसे जोडो

Tuesday, February 10, 2009

अतीत के सुनहले स्वर






































































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"૧૫૦ વર્ષની ભારતની ટપાલ-ટિકિટો અને તેનો ઈતિહાસ (૧૮૫૪-૨૦૦૪)"
સંગ્રાહક શ્રી રમેશ ઠાકરનું અફલાતુન પુસ્તક.
Strongly recommended for all philatelists !


 
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